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जिस देश के न्यायमूर्ति सुरक्षित न हो उस देश में आम दलित आदिवासी का क्या होगा? 

दिल्ली: आज आजादी के 75 वर्ष बीत गए परंतु ऐसा लगता है कि 19 वीं शताब्दी में जी रहे हैं इस देश के दलित आदिवासी । इस देश में सदियों से चला आ रहा जाती प्रथा, भेद भाव, उच्च नीच जैसी घिनौनी प्रथा कहीं न कहीं इस देश में ऐसी टुच्ची मानसिकता वाले लोग आज भी  हैं और उसी सोच से इस देश के दलित आदिवासी को अपमानित कर रहे हैं शोषण कर रहे हैं।

आप लोगों ने कितनी कहानी सुनी होगी इस देश की विभिन्न राज्यों के,  विभिन्न गांवों के जहां  किसी दूल्हे को, तो किसी पदाधिकारी को  या किसी न किसी  मुद्दे पर तो यहां के दलित आदिवासी एवं पिछड़ों को हमेशा सताया गया है शोषण किया गया चाहे दिली हो उत्तर प्रदेश हो, बिहार हो राजस्थान हो, मध्य प्रदेश हो या किसी भी राज्यों की कहानी देखो पढ़ो अपलोगों को मिल ही जाएगा ऐसी घटनाएं देखने को जहां कुछ न कुछ ऐसी नासमझी और टुच्ची मानसिकता के लोग जो इस देश में अशांति फैलाना चाहते हैं। देश के भीतर अंदरुनी जंग की शुरुआत कर रहे हैं जिससे इस देश में शांति भंग हो जाए।

ऐसी ही एक घटना जो आपको चिंतित कर देगा, इस देश की व्यवस्था पर प्रश्न करने पर बेबस कर देगा। इस देश के मुख्य न्यायमूर्ति बी०आर० गवई  जो एक दलित समुदाय से तालुक रखते हैं, जिन्हें माना जाता है कि कानून के मुख्य रखवाला इस देश की संपूर्ण पूंजी संविधान के अनुसार सबसे श्रेष्ठ व्यतित्व वाला नागरिक का सुप्रीम कोर्ट में टुच्ची मानसिकता वाला वकील ने जूता फेंक कर मरने की बात कही जिससे इस देश की संपूर्ण पूंजी संविधान की अवहेलना हुई,।

इस देश में दलित आदिवासी होने का अहसास दिलाया गया । यदि इस देश में ऐसे महान व्यक्तित्व वाले सम्मानित नागरिक जो इस देश के श्रेष्ठ पद पर पदस्थापित हैं उनके साथ ये हो सकता है तो आम आदमी इस देश में कैसे जीने की कल्पना करेगा? आखिर क्या होगा इस देश में दलितों का आदिवासियों का  अगर आजादी के बाद ऐसी स्थिति रहेगा देश का तो कहा जायेंगे ये लोग चिंतन का विषय है।

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